पत्रकारिता मर रही है, लेकिन इसे मरने नहीं देना है – विश्वनाथ सचदेव
ब्यूरो रिपोर्ट : मुंबई प्रेस क्लब के ऐतिहासिक और गरिमामय मंच पर हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह विश्वनाथ सचदेव का अभिनंदन हुआ। धर्मयुग, नवभारत टाइम्स और भवन्स नवनीत के संपादक तथा पत्रकारिता के शिखरपुरुष विश्वनाथ जी को भारतीय प्रेस परिषद द्वारा राजाराम मोहन राय जीवन गौरव सम्मान से विभूषित किया गया। यह आयोजन न केवल एक महान व्यक्तित्व को सम्मान देने का अवसर था, बल्कि पत्रकारिता के बदलते युग के गहरे सच और संघर्षों पर संवाद का अनूठा मंच भी बना।

इस अवसर पर दैनिक भास्कर (नागपुर) के ग्रुप संपादक और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य प्रकाश दुबे की गरिमामयी उपस्थिति चर्चा को नई दिशा दे गई। वहीं, राज्यसभा के पूर्व सांसद और महाराष्ट्र टाइम्स जैसे कई प्रमुख अखबारों के पूर्व संपादक कुमार केतकर ने अपने अनुभवों के माध्यम से पत्रकारिता के उस समय का चित्रण किया, जब यह केवल मिशन थी। उन्होंने बताया कि किस तरह मालिकों के लिए पत्रकारिता एक मनोरंजन का कारोबार बस है और कैसे अंग्रेजी पत्रकार हिंदी और मराठी पत्रकारों को हीन दृष्टि से देखते थे, लेकिन जब ज़रूरत पड़ती, तो उनकी सराहना करना भी नहीं भूलते थे।
इस संवाद को आगे बढ़ाते हुए इकॉनमिक्स टाइम्स के पूर्व पत्रकार और प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष गुरबीर सिंह ने इसे “क्लास वॉर” का नाम दिया। उन्होंने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन सत्य है।” उनकी बातों ने पत्रकारिता के भीतर सुलग रहे उस अनकहे संघर्ष को सामने रखा, जिसे अक्सर दबा दिया जाता है।
एनडीटीवी में रहते हुए मैं खुद भी इसका भुक्त भोगी रह चुका हूं।
हालांकि, अंग्रेजी पत्रकारिता के वरिष्ठ स्तंभ विद्याधर दाते ने खुले दिल से स्वीकार किया कि हिंदी पत्रकारों की राजनीतिक समझ गहरी और प्रभावशाली है। यह उनकी स्वीकारोक्ति थी, जिसने हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता के बीच सेतु बनाने का प्रयास किया।

चर्चा में यह भी सामने आया कि एक समय टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप के मालिक जैन परिवार ने नवभारत टाइम्स को बंद करने का विचार किया था। लेकिन यह योजना विफल रही, और आज नवभारत टाइम्स मुंबई का सबसे लोकप्रिय हिंदी अखबार बना हुआ है।
जब दैनिक भास्कर के शहर संपादक भुवेंद्र त्यागी ने विश्वनाथ जी से उनके 60 वर्षों की पत्रकारिता यात्रा और वर्तमान परिदृश्य पर सवाल किया, तो उनका उत्तर गहरी अंतर्दृष्टि से भरा हुआ था। उन्होंने कहा,
“पत्रकारिता पहले मिशन थी, अब कमीशन हो गई है।”
उन्होंने आगे जोड़ा,
“पहले अखबार छपकर बिकते थे, अब बिककर छपते हैं।”
उन्होंने पत्रकारिता में विश्वसनीयता के अभाव पर दुख व्यक्त करते हुए कहा,
“पत्रकारिता मर रही है, लेकिन इसे मरने नहीं देना चाहिए।”
यह वाक्य न केवल एक संकल्प था, बल्कि पत्रकारिता की आत्मा को जीवित रखने का आह्वान भी।
कार्यक्रम को और विशेष बनाया अभिनेता राजेंद्र गुप्ता और लोकगायक विनोद दुबे ने, जिन्होंने विश्वनाथ जी की कविताओं को अपने स्वर दिए।
नवभारत टाइम्स के एक और पूर्व संपादक सचिन्द्र त्रिपाठी तो विश्वनाथ जी से मिली सीख को याद कर भाउक हो उठे।
वहीं, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह ने वीडियो संदेश के माध्यम से कार्यक्रम की गरिमा में चार चांद लगाए। उन्होंने सचदेव जी के सानिध्य और योगदान को रेखांकित करते हुए पत्रकारिता जगत में उनके अभूतपूर्व योगदान को सलाम किया।
विश्वनाथ सचदेव केवल एक संपादक नहीं, बल्कि पत्रकारिता के लिए जीवित प्रेरणा हैं। उनकी सादगी, विद्वत्ता और सहजता उन्हें सबसे अलग बनाती है। उनका सानिध्य पाना हम जैसे पत्रकारों के लिए सौभाग्य की बात है।
यह संवाद केवल एक सम्मान समारोह नहीं था, बल्कि पत्रकारिता के उन पहलुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास था, जिनकी चर्चा अक्सर छूट जाती है। यह कार्यक्रम न केवल प्रेरणा देता है, बल्कि पत्रकारिता की खोई हुई आत्मा को पुनर्जीवित करने का संकल्प भी करता है।